मेरा जीवन रिस्तों का तीर ,,,,,,,,


जब भी इस शहर में कमरे से मैं बाहर निकला।
मेरे स्वागत को हर एक जेब से खंजर निकला।।

तितलियों फूलों का लगता था जहाँ पर मेला।
प्यार का गाँव वो बारूद का दफ्तर निकला।।

डूब कर जिसमें उबर पाया न मैं जीवन भर।
एक आँसू का वो कतरा तो समुंदर निकला।।

मेरे होठों पे दुआ उसकी जुबां पे गाली।
जिसके अन्दर जो छुपा था वही बाहर निकला।।

जिंदगी भर मैं जिसे देख कर इतराता रहा।
मेरा सब रूप वो मिट्टी की धरोहर निकला।।

वो तेरे द्वार पे हर रोज ही आया लेकिन।
नींद टूटी तेरी जब हाथ से अवसर निकला।।

रूखी रोटी भी सदा बाँट के जिसने खाई।
वो भिखारी तो शहंशाहों से बढ़ कर निकला।।

क्या अजब है इंसान का दिल भी "मनीष"।
मोम निकला ये कभी तो कभी पत्थर निकला।।

               ✍ Mera Jeevan

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