मेरे घर को जलाकर उदास था,,,,,,,,,,,,,

क्यों दुश्मनी वो मुझसे निभाकर कर उदास था।
जो शख्श मेरे घर को जलाकर उदास था।।

चेहरे पे मेरे देखना चाहा था उसने क्या।
आईना मुझको क्यों वो दिखाकर उदास था।।

जाने हुआ यह क्या मुझे छोड़ने के बाद।
दौलत जमाने भर की कमाकर उदास था।।

मेरी दुआ में कुछ तो कमी रह गई तभी।
हक में वो मेरे हाथ उठाकर उदास था।।

नाराजगी भी मुझसे बड़ी महंगी पड़ी उसे।
 खुशियों को अपने दिल में बसा कर उदास था।।

गजलों में मेरी जाने क्या आया उसे नजर।
शेरों पे तालियां वो भी बजाकर उदास था।।

नजदीकतर थे कितने और कैसे थे "मनीष"।
जिनके करीबतर भी वो जाकर उदास था।।

           ✍ Mera Jeeavn

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