बीते हुए रिश्तो के लम्हे......

सीने  में अब  किसी  के  मसीहा  नहीं रहा।
लगता  है शख़्स  कोई भी ज़िंदा  नहीं रहा।।

पत्थर का ले के दिल  जो फिरे हैं जहान में।
वो  कह  रहे  हैं  आप  में  ज़ज़्बा नहीं रहा।।

सीखे  बिना  हुनर  वो  चलाते  थे कश्तियाँ।
तूफाँ  में   उनके  हाथ   सफ़ीना  नहीं  रहा।।

पानी उतर  ही जायेगा  इक दिन रुआब से।
ज्यादा  दिनों का कोई  दिखावा  नहीं  रहा।।

रखिये  न  आरज़ू  के  परिंदों  को कैद  में।
पहुंचा  वही फ़लक पे  जो ठहरा नहीं रहा।।

बढ़ती  ही  जा  रहीं  हैं  मकानों में मंज़िले।
लेकिन  किसी भी तल में  घरौंदा नहीं रहा।।

कैसे करूँ गिला मैं किसी की  जफ़ाओं से।
साया भी गम की छाँव में अपना नहीं रहा।।

लोगों  ने  ठोकरें  ही हमें  दीं हैं  इस तरह।
हमको  किसी पे  आज भरोसा  नहीं रहा।।

मुझको पता बता दे ख़ुदा उस जहान का।
रहता कहाँ  है वो, जो कहीं का नहीं रहा।।

इंसान किस नज़र से उसे कह रहे हैं आप।
जिसकी नज़र में शर्म का क़तरा नहीं रहा।।

कांधों  पे  ढो  रहे   हो   रवायत  मरी  हुई।
अच्छा  भला  नियम भी  हमेशा नहीं रहा।।

करता न दागदार वो दामन को  इस  तरह।
लगता है उसके घर में वो  शीशा नहीं रहा।।


Comments

Popular posts from this blog

दर्द भरी गजल

तिरंगे में लिपट जाऊंगा,,,,,,,