पिता की याद दर्द भरी गजल,,,,,,शहर सूना कर गये,,,,,,,,,

तुम गए क्या यह शहर सूना कर गये।
दर्द का  आकार  दुगुना जो कर गये।।

जानता हूँ नहीं सुनाओगे मुझे जीवन की कथाएँ।
शहर भर की सूचनाएँ उम्र भर की व्यस्तताएँ।।

पर जिन्हें अपना बनाकर भूल गए हो सदा तुम।
वे तुम्हारे बिन तुम्हारी वेदना किसको सुनाएँ।।

फिर मेरा जीवन उदासी का नमूना कर गये।
तुम गए क्या यह शहर सूना कर गये।।

"मनीष" शमशान में तुम्हारी याद के तराने बुन रहा था।
वक्त खुद जिनको मगन हो सांस कल थामे सुन रहा था।।

तुम अगर कुछ साल रूकते तो तुम्हें मालूम होता।
किस तरह बिखरे पलों में मैं बहाने चुन रहा था।।

रात भर हाँ-हाँ किया पर प्रातः ना कर पाये।
तुम गए क्या यह शहर सूना कर गये।।

        ✍ Mera Jeevan

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