मैं सुलग रहा हूं,,,,,,,,,,,

ये जो बेरुखी है तेरी क्या कहूँ मैं सुलग रहा हूँ।
ये जो बेपरवा है तू हर घडी क्या कहूँ बस सुलग रहा हूँ।।

ये जो नादानियाँ हैं जैसे चाँद में दाग हो कहीं।
अब बस भी कर ये वार फकत मैं सुलग रहा हूँ।।

नारंगी सा है आसमान सुबह सुबह और तेरा इंतजार।
रात फिर बीत गयी तेरी याद में मैं बस सुलग रहा हूँ।।

मेरे लबों पे तेरा जिक्र कभी गया ही नहीं क्या कहूँ।
बड़ी मुक्कमल सी है तन्हाई की रात में सुलग रहा हूँ।।

मैंने महसूस की है तेरी आहट कई दफे दर्द भी है।
सोचता हूँ की कह दूँ वो बात मैं सुलग रहा हूँ।।

अफसोस जरा सा है तो सही जुबान चुप भी है।
टूट न जाये मेरी दोस्ती का खुमार मैं सुलग रहा हूँ।।

वजह कुछ भी हो तेरे जाने की तू बेवफा नहीं।
मैं करूँगा और थोड़ा इंतजार मैं सुलग रहा हूँ।।

            ✍ Mera Jeevan

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